Monday, October 16, 2023

क्यों लगा रहता है लखनऊ के कुछ महत्वपूर्ण रास्तों पर जाम क्या अंग्रेज़ों की हरकतों का है ये अंजाम ?

 

लखनऊ झेल रहा है अंग्रेजी हुकूमत के परिणाम

कभी आपने सोचा है कि लखनऊ में छतर मंज़िल के सामने, सिकंदरबाग चौराहे पर और सफ़ेद बारादरी के पास हमेशा ट्रैफिक जाम क्यों लगा रहता है ? शायद इसलिए कि ये रास्ते लखनऊ को आबाद करने वाले नवाबों ने कभी बनवाये ही नहीं थे।  इन रास्तों को अंग्रेज़ों ने ज़बरदस्ती लखनऊ की बेहतरीन इमारतों को गिरा कर बनाया। 

साल १८५७ में अंग्रेज़ रेजीडेंसी में फंसे हुए थे ।  वे ३० जून १८५७ की करारी हार से उबर भी न पाए थे की उनपर रेजीडेंसी के चारों ओर से हमला चालू हो गया जो लगभग तीन महीने चलता रहा उसके बाद ही कानपुर से उनकी मदद को एक छोटी अंग्रेज़ सेना पहुँच पायी ।  ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि लखनऊ में आलमबाग से लेकर रेजीडेंसी तक हर घर, हर गली में क्रांतिकारी छुपे बैठे थे। सितम्बर १८५७ में रेजीडेंसी में फंसे अंग्रेज़ों की मदद करने आयी सेना, जिसमें अपने समय के महानतम समझे जाने वाले क्रूर अफसर नील और हेवलॉक थे, पर क्रांतिकारियों ने इतना ज़बरदस्त हमला किया की बजाय मदद कर पाने के वो भी  रेजीडेंसी में फंस गयी।  इस हमले में ब्रिगेडियर जनरल नील बेगम हज़रत महल पार्क के दक्षिणी ओर स्थित नील गेट पर चढ़े एक क्रांतिकारी की गोली का शिकार हो गया।

इन घटनाओं की वजह से नवंबर १८५७ में जब कॉलिन कैम्पबेल ने रेजीडेंसी में फंसे अंग्रेज़ों को निकाला तो उन्होंने खुली सड़क से लखनऊ में घुसने की कोशिश नहीं की बल्कि इमारतों में बारूद के धमाके करके रास्ता बनाते हुए वो आगे बढ़े ।

१८५८ के अंत तक लखनऊ अंग्रेज़ों के कब्ज़े में था और वो धीरे धीरे लखनऊ में महलों के घने जाल को कम करने लगे।  रेजीडेंसी में घुसने में सबसे ज़्यादा समस्या उस स्थान से पहले बने महलों की वजह से आयी इसलिए सबसे पहले छतर मंज़िल के आसपास बनी दीवारों को ध्वस्त किया गया फिर बड़ी और छोटी छतर मंज़िल के बीच में बनी एक बहुत ही खूबसूरत फव्वारों से सजी संगमरमर की बारादरी को ध्वस्त कर दिया गया और बीच से सड़क निकाल दी गयी।  उल्लेखनीय है की ये छोटी सी इमारत इतनी खूबसूरत थी की लार्ड ऑकलैंड की बहन जो की नवाब साहब द्वारा महल देखने के लिए निमंत्रित थी इस ईमारत की खूबसूरती देख कर मंत्रमुग्ध हो गयी और उसने लिखा “पूरे हिंदुस्तान में शायद ये अकेली ऐसी ईमारत है जिसपर मेरा दिल आ गया है और सोचती हूँ कि अगर ये मेरी होती तो कितना अच्छा होता।”  आज का कमिश्नर ऑफिस छोटी छतर मंज़िल  के एक भाग पर बना है  

सिकंदर बाग नवाब वाजिद अली शाह द्वारा बनवाया गया एक आलीशान बाग था। आज जो सिकंदरबाग हम देखते हैं वो १८५७ के सिकंदरबाग का केवल बीस प्रतिशत भाग है। सिकंदरबाग के पूर्वी छोर पर तोपों से एक गड्ढा कर अंग्रेज़ सिकंदरबाग में घुसे थे। यह स्थान अंग्रेज़ों ने एक स्मारक के रूप में विकसित किया। इस स्मारक को अभी भी ऍन बी आर आई के अंदर देखा जा सकता है। १८५८ के बाद सिकंदर बाग को ध्वस्त करके उसे बीच से सड़क निकाल दी गयी।

कैसरबाग़ नवाब वाजिद अली शाह का एक हसीन सपना था। ये चारों तरफ से आम आदमी के लिए बंद था।  इसके पश्चिमी छोर पर नाट्य प्रस्तुति आयोजित की जाती थी और शायद केवल इस लिए एक बहुत ही खूबसूरत ईमारत जिसका नाम बड़ी लंका था को बनवाया गया था। बाद में ध्वस्त करके बड़ी लंका  की जगह अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बनायी गयी। उत्तर की ओर भी कैसरबाग़ बंद था। चूँकि अंग्रेज़ों पर सबसे ज़्यादा गोलाबारी कैसरबाग़ से ही हुई थी इसलिए अंग्रेज़ों ने इसको खोल दिया और बीच से सड़क निकाल दी।

लखनऊ नवाबी समय में भी एक बहुत ही सोच समझ और सूझ बूझ से बनाया गया शहर था लेकिन अंग्रेज़ों ने जान बूझ कर इसकी इमारतों को ध्वस्त कर दिया क्यूंकि उनमें छुपे क्रांतिकारियों ने बहुत से अंग्रेज़ सिपाही और अफसरों की जान ली थी ।

इसीलिए हम देखते हैं कि प्रारम्भ में जिन रास्तों की बात हुई थी उनपर अभी तक भीषण जाम लगता है और शायद आगे भी लगता रहेगा ।

अनुराग कुमार 'अविनाश' 

लेखक एक उपन्यासकार हैं और १८५७ के लखनऊ पर दो उपन्यास लिख चुके हैं ।